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इलाहाबाद के हॉस्टल की तहरी: यादों में बसी स्वाद की जुगलबंदी





साइंस फैकल्टी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए hostel की ज़िन्दगी अपनी ही दुनिया थी। आज उम्र 35 पार कर गई, लेकिन हॉस्टल के उस छोटे से कमरे, प्लास्टिक की थाली और मिट्टी की हांडी में बनी 'चावल की तहरी' का स्वाद आज भी मुंह में घुलता रहता है।

वो दौर जब पढ़ाई का बोझ, assignments का झोल, और हॉस्टल के कमरों में गूंजनती हँसी मिलकर अलग ही माहौल बनाते थे। रूम नंबर 17, साइंस ब्लॉक के पास, शाम ढलते ही तहरी की चर्चा होती। "आज किसकी कुकिंग की बारी?" — यह सवाल उठते ही सबकी नजरें मुझ पर आ टिकती थीं। क्योंकि मेरी तहरी में 'मसालों' जितना स्वाद, 'मजाक' भी खूब होता था — कभी आलू कम, कभी मटर ज्यादा, और कभी चावल ही गायब!


तहरी बनाने की यूनिवर्सिटी स्टाइल

तहरी की असली पहचान थी — सीमित सामान, असीमित दोस्ती।
सबसे पहले, सब्जियां जुटाओ — आलू, मटर, टमाटर, और गोभी के टुकड़े। 'रात की बासी' चावल हों तो भी चलेगा, क्योंकि हॉस्टल में 'जुगाड़' ज़रूरी है। कुकर निकालो, या hostel के पुराने पतीले में तेल गरम करो:

जीरा और तेजपत्ता डालते ही रूम के सारे लड़के "वाह भई वाह!" कह कर आने लगते।


प्याज और टमाटर, फिर अदरक-लहसुन का पेस्ट, नमक, हल्दी, लाल मिर्च — सब मिलाओ।


सब्जियां डालो, दो मिनट भूनो, फिर धोए हुए चावल डालो और अच्छे से मिलाओ।


पानी डालो, दो-तीन सीटी आने दो और बस, तहरी तैयार!


ऊपर से ताजा धनिया, और साथ में hostel वाली पतली हरी चटनी — मज़ा ही अलग!


तेहरी के साथ hostel की शामें हमेशा यादगार बन जाती थीं। कोई दोस्त हंसी में बोलता, "भई, तेरी तहरी में टमाटर तो बिल्कुल वैसे ही गायब है जैसे hostel में punctuality!" कोई बोलता, "आज तहरी में नमक ज्यादा है या तेरी फिजिक्स की समझ?" ऐसे ही फनी जोक्स के साथ, प्यार-भावना से सजी तहरी हर बार नई याद बनाती।

हॉस्टल की तहरी में असली स्वाद था — साथ बैठकर खाना, पुरानी कहानियां सुनना, और कितनी ही "छुपी हुई भूख" को मिलकर मिटाना। कई बार गैस खत्म, तो मोमबत्ती जलाकर तहरी पकी। उस दिन तो लगा, hostel life किसी adventure movie से कम नहीं। 

आज जब शहर में fancy restaurants मिल जाते हैं, फिर भी उस hostel की तहरी और लाइफ के मज़े कहीं खो जाते हैं। दोस्त चले गए, कुछ scientist बन गए, कुछ professor, पर तहरी वाली मुलाकातें हमेशा दिल के kitchen में simmer करती रहती हैं।

कई बार Facebook खोलता हूं, पुराने दोस्तों को tag करता हूं — "यारों, तहरी वाली वो रातें दोबारा कब आएंगी?" कोई हँसता है, कोई इमोजी भेजता है, और सब फिर एक बार — तहरी और दोस्ती की यादों में खो जाते हैं।
रेसिपी का लाइव मज़ा

अगर hostel की तहरी घर पर बनानी है —

एक कप चावल


दो टेबलस्पून तेल


एक प्याज


एक टमाटर


एक आलू


दो हरी मिर्च


नमक, हल्दी, और धनिया पाउडर


सब्जियां जो मन करें डाल लें
कुकर में सब मसाले भून लें, सब्जियां डालें, पानी डालें, चावल डालें, और 'दोस्ती' का स्वाद मिलाते हुए पकाएं।
अंत

हॉस्टल की तहरी सिर्फ डिश नहीं थी — वो हमारी जिंदगी, मज़ाक, और भावनाओं का मेल था। आज भी जब घर में तहरी बनती है, मन करता है — वापस hostel चला जाऊं, फिर से उसी लाइफ को जी लूं... क्योंकि असली तहरी में स्वाद सिर्फ मसालों का नहीं, यादों और यारी का भी था।

"दोस्ती की तहरी, यादों की चटनी, और जिंदगी की हँसी.... इलाहाबाद hostel की रेसिपी ऐसे ही दिल में रहती है।"

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पूरी रेसिपी यहाँ से देख लीजिए https://www.youtube.com/watch?v=bY5kb8N_IHg

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