सुमा हमेशा से ही अपने मोहल्ले में सबकी मदद के लिए तैयार रहने वाली थी। कभी-कभी मुझे लगता है, जैसे लोग तभी याद करते हैं जब उन्हें कोई जरुरत हो। मेरी पड़ोसी सीमा भी कुछ ऐसी ही थी—पहले तो कभी ढंग से बात तक नहीं की, लेकिन बेटे के स्कूल में दाखिले के लिए सिफारिश चाहिए थी, तो सीधा मेरे पास आ गई। ना चाहते हुए भी, इंसानियत के नाते मैंने अपने भाई से, जो एक अधिकारी है, उसकी मदद के लिए बात की—जबकि मैंने खुद कभी अपने लिए ऐसा कुछ नहीं मांगा था। काम निकल जाने के बाद सीमा ने न तो धन्यवाद कहा, न ही दोबारा कभी कोई बातचीत की। अब तो मंदिर में प्रसाद चढ़ाने-भंडारे कराने में ही व्यस्त दिखती है, शायद मुझे तो जैसे जानती ही नहीं। ऐसे अनुभवों के बाद दिल यही सोचता है कि नेकी दरिया में डालना वाकई आसान नहीं है, क्योंकि जब सामने वाला एहसान फरामोश निकले तो वह बोझ और भी भारी हो जाता है।
सीमा की बेरुखी और उपेक्षा के बाद भी दिल को थोड़ी तसल्ली तब मिली, जब मोहल्ले के मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की बारी आई। बचपन से ही मेरी आदत रही है कि मिठाई खुद बना कर ही बांटू, ताकि हर स्वाद में अपनापन और शुद्धता घुली हो। इस बार मैंने मिल्क पाउडर से बनी खास बर्फी तैयार की—जिसे बनाना बेहद आसान है, झटपट बन जाती है और स्वाद भी ऐसा कि हर कोई पूछ उठे, "इतनी टेस्टी मिठाई कहां से आई?" मंदिर में जब मेरी हाथों की बनी मिल्क पाउडर वाली बर्फी प्रसाद के तौर पर बांटी गई, तो लोगों की मुस्कान और तारीफ ने मेरे मन की सारी शिकन मिटा दी। मुझे लगा, सच्ची नेकी वही है जिसमें अपनापन हो, बिना किसी उम्मीद के, और उसमें अपना हुनर किसी की मुस्कान का सबब बन जाए। अब तो जब भी कोई उत्सव आता है, मैंने यही ठान लिया है कि प्रसाद में अपनी मिल्क पाउडर वाली मिठाई ही बांटना है—साफ, शुद्ध, स्वादिष्ट और सबको जोड़ने वाली। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि जो सुकून दूसरों के मुंह मीठा कराने में है, वो एहसानमंदी की तलाश में नहीं, अपने काम और स्वाद से लोगों के चेहरे पर आई मुस्कान में ही मिलती है।
आप पूरी विडियो यहाँ से देख सकते हैं https://www.youtube.com/watch?v=2cwVwL_6rDU
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