यह कहानी एक छोटे से गांव की है, जहाँ एक परिवार रहता था। उस परिवार में माँ, पिता, बहन और तीन बच्चे थे। परिवार के सबसे छोटे बेटे की उम्र सिर्फ सात साल थी। एक बार परिवार के कुछ सदस्य गाँव की ओर कुछ जरूरी काम से जाने लगे। बच्चे अपने गाँव घूमने जाने की खुशी में उछल रहे थे, लेकिन सबसे छोटा बेटा उनके साथ नहीं जा पाया।
उस छोटे बच्चे को यह बात बहुत भारी लगी। वह माँ से बोला, "माँ, मुझे भी लेकर चलो, मैं भी घूमना चाहता हूँ।" माँ ने प्यार से उसे समझाया कि वह इस बार नहीं जा सकता, लेकिन वह बहुत उदास हो गया। उसने माँ से एक ही बात कही, "अगर मैं नहीं जा सकता तो कम से कम गाँव से अमावट ले आना।"
माँ ने वादा किया कि गाँव से अमावट जरूर लाएगी। परिवार लगभग सत्रह दिन बाद लौटा। बच्चे ने अपनी माँ को देखते ही कहा, "माँ, अमावट?" माँ ने सिर हिलाया, जैसे कह रही हो, "हाँ, लाए हैं।"
अगले दिन जब सबने अपने-अपने सामान खोले, तो अमावट नहीं मिला। बच्चे ने माँ से फिर पूछा, "माँ अमावट?" इस बार माँ ने टालू अंदाज में कहा, "अरे, भूल गए लाना।" बच्चे को यह सुनकर ऐसा लगा जैसे माँ ने उसे ही भूल गया हो।
उसके छोटे दिल में बड़ा दुख हुआ। वह अकेले अपने कमरे में बैठ गया, आँखों में आंसू छलक आए। पर उसने कभी अपनी माँ पर नाराज़गी जताई नहीं। बस यह गम उसके अंदर एक छूट गई जो कभी नहीं भुलाई जा सकी।
वह बच्चा बड़ा होकर जब भी अमावट खाता है, उस दिन की याद उसे फिर से इंतजार, उम्मीद और छूटी हुई उस मासूम भेंट की याद दिलाती है। अमावट उसके लिए सिर्फ एक स्वादिष्ट भोजन नहीं, बल्कि बचपन की एक अनकही दास्तान बन गई।
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