कल रात ठीक 10 बजे, जयपुर स्टेशन पर मैं — गुड़िया शर्मा — और मेरी पुरानी सहेली रीना सपरिवार मिल गए। रीना को देखकर मुझे बरसों पुरानी याद आ गई… और हाँ, ये वही रीना थीं, जिन्होंने मेरी ट्रेन की सीट कन्फ़र्म न होने की दुआएं सबसे पहले दी थीं!
और कसम से, जब तक मैं राजस्थान में थी, सीट कन्फ़र्म हुई ही नहीं। जैसे ही ट्रेन अलवर पार करके हरियाणा में दाख़िल हुई, तभी टीटी साहब बड़े ठाट से आए और बोले —
"बधाई हो मैडम, आपकी सीट कन्फ़र्म हो गई है!"
मैंने मन में सोचा — वाह री रीना की दुआएँ…
अब रीना से पहले ही तय था कि डिनर वही लाएंगी। मैंने उनसे कहा था — "देख यार, खाना थोड़ा ही लाना, मैं ज़्यादा नहीं खाती"।
पर सर्जी (उनके पति) बड़े ज़ोरदार मेहमाननवाज़ निकले — इतना सारा खाना ले आए कि पूरा कोच खिला सकते थे।
थैले में एक बड़ा-सा मिठाई का डिब्बा था — ऊपर से चमचमाता घेवर, साथ में काजू कतली की प्लेट। मिठाइयों के नीचे छोटे-छोटे डब्बों में सब्ज़ियाँ मिलीं — दाल, आलू की सब्जी, और शाही पनीर। लेकिन रोटियाँ कहीं नज़र नहीं आईं।
मैंने पहले तो हैरानी जताई, फिर खुद को समझाया — "अरे हाँ… मैंने ही तो बोला था कम खाना लाना, शायद इसलिए रोटी नहीं रखी होगी।"
ख़ैर, मैंने दाल पी ली, आलू चख लिया, पनीर के टुकड़े गपकर पानी पी लिया — पेट भर गया।
फिर मीठा खाने का मन हुआ। मैंने काजू कतली वाला डिब्बा खोला…
और जैसे ही ढक्कन उठा —
अरे वाह! अंदर से 8 गरमागरम रोटियाँ निकलीं!
रीना हँसते-हँसते बोली — "हमारे यहाँ मिठास के साथ-साथ पेटभर की रोटियाँ भी सरप्राइज में मिलती हैं!"
मैंने कहा — "अगली बार दुआ सीट कन्फ़र्म होने की देना, ऐसे कंफ़्यूजन वाली नहीं!"
ट्रेन मे मिलने वाली पूड़ी सब्जी बनाने की पूरी रेसिपी
https://youtu.be/qQwVGq5HEys
0 टिप्पणियाँ