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गाँव की पुरानी यादें: प्रयागराज का भंडारा और जलजीरा की महक

गाँव की पुरानी यादें: प्रयागराज का भंडारा और जलजीरा की महक

जब भी मैं अपनी आँखें बंद करती हूँ, मेरे मन का आलम मुझे वापस प्रयागराज के उस छोटे से गाँव में ले जाता है, जहाँ मेरी बचपन की हर याद मिट्टी की सौंधी खुशबू और गंगा की लहरों की आवाज़ से सनी है। प्रयागराज, जिसे कभी इलाहाबाद कहा जाता था, वो शहर जो संगम की पवित्रता और संस्कृति की गहराई के लिए जाना जाता है, मेरा गाँव वहाँ की एक छोटी-सी बस्ती में बसा था। गाँव का भंडारा, जो हर साल मंदिर के प्रांगण में लगता था, मेरे लिए सिर्फ़ एक उत्सव नहीं, बल्कि मेरे बचपन का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा था। और उस भंडारे में एक चीज़ थी, जो मेरे दिल और जीभ को आज भी लुभाती है—आम का पना, जिसे हम गाँव वाले प्यार से "जलजीरा" कहते थे।

प्रयागराज का भंडारा: एक अनोखा मेला

प्रयागराज का मेरा गाँव, जो गंगा के किनारे बसा था, हर साल भंडारे के लिए सज-संवर जाता था। मंदिर का प्रांगण रंग-बिरंगे झंडों और फूलों की मालाओं से सजा होता। गाँव के हर घर से लोग आते—बूढ़े, जवान, बच्चे। कोई भजन गाता, कोई खाना परोसता, और कोई बस हँसी-ठिठोली में मस्त रहता। मंदिर की घंटियों की आवाज़, भजनों की मधुर धुन, और बच्चों के हँसने-खेलने का शोर—ये सब मिलकर एक ऐसा समां बाँधता था कि हर कोई उसमें खो जाता।

भंडारे का सबसे ख़ास हिस्सा था खाना। पूड़ी, कचौड़ी, आलू की सब्ज़ी, खीर, और हाँ, वो जलजीरा, जो हर किसी की प्यास बुझाता था। मेरी माँ, गाँव की दूसरी औरतों के साथ, दिन-रात मेहनत करके भंडारे के लिए खाना तैयार करती थीं। लेकिन मेरे लिए सबसे यादगार था माँ का बनाया जलजीरा। वो स्वाद, वो ताज़गी, वो प्यार—आज भी मेरे मन में बस्ता है।

जलजीरा: गाँव की मिट्टी का स्वाद

जलजीरा, या कहें आम का पना, गर्मियों की तपन में राहत देने वाला एक जादुई पेय था। कच्चे आम की खटास, पुदीने की ताज़गी, भुने जीरे का तीखापन, और हल्की-सी मिठास—ये सब मिलकर एक ऐसा स्वाद बनाते थे कि हर घूँट में गाँव की सादगी और प्यार झलकता था। माँ इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थीं। मैं आज भी याद करती हूँ कि कैसे वो सुबह-सुबह कच्चे आम इकट्ठा करती थीं, उन्हें उबालती थीं, और फिर उनका गूदा निकालकर जलजीरा पाउडर तैयार करती थीं।

माँ का जलजीरा पाउडर रेसिपी

माँ की जलजीरा रेसिपी आज भी मेरे लिए एक ख़जाना है। वो इसे बड़े प्यार से बनाती थीं। मैंने कई बार उन्हें ध्यान से देखा है, और आज मैं उस रेसिपी को आपके साथ साझा कर रही हूँ, ताकि आप भी उस गाँव के स्वाद को अपने घर में ला सकें।

सामग्री:

  • 4-5 कच्चे आम (छोटे, खट्टे)
  • 1 कप ताज़ा पुदीना पत्तियाँ
  • 2 बड़े चम्मच भुना जीरा पाउडर
  • 1 बड़ा चम्मच काला नमक
  • 1 छोटा चम्मच काली मिर्च पाउडर
  • 1/2 छोटा चम्मच हींग
  • 2 बड़े चम्मच चीनी या गुड़ (स्वादानुसार)
  • 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर (वैकल्पिक)
  • नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि:

  1. कच्चे आम तैयार करें: कच्चे आमों को धोकर उबाल लें। ठंडा होने पर उनका गूदा निकाल लें।
  2. पुदीना पेस्ट: ताज़ा पुदीना पत्तियों को धोकर पीस लें। इसमें थोड़ा पानी मिला सकते हैं।
  3. मसाले मिलाएँ: एक बड़े बर्तन में आम का गूदा, पुदीना पेस्ट, भुना जीरा पाउडर, काला नमक, काली मिर्च, हींग, और चीनी डालकर अच्छे से मिलाएँ।
  4. पाउडर बनाएँ: इस मिश्रण को धीमी आँच पर गाढ़ा होने तक पकाएँ। ठंडा होने पर इसे सुखाकर पाउडर बना लें। आप इसे मिक्सर में भी पीस सकते हैं।
  5. संग्रह करें: इस जलजीरा पाउडर को एक एयरटाइट डिब्बे में रखें। इसे महीनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
  6. पेय तैयार करें: एक गिलास ठंडे पानी में 1-2 छोटे चम्मच जलजीरा पाउडर मिलाएँ, बर्फ डालें, और ताज़ा पुदीने की पत्तियों से सजाएँ।

ये जलजीरा पाउडर न सिर्फ़ स्वादिष्ट है, बल्कि पाचन के लिए भी फ़ायदेमंद है। गर्मियों में ये प्यास बुझाने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। अगर आप इसे बनाना चाहते हैं, तो यूट्यूब पर "जलजीरा पाउडर रेसिपी" सर्च करें। वहाँ आपको कई वीडियो मिल जाएँगी, जो आपको इसे बनाने का आसान तरीक़ा दिखाएँगी।

भंडारे की वो यादें

भंडारे में जलजीरा का मज़ा ही अलग था। माँ और गाँव की दूसरी औरतें सुबह से ही मिट्टी के घड़ों में जलजीरा तैयार करती थीं। वो घड़े मंदिर के एक कोने में रखे जाते, और ठंडक के लिए उनके चारों ओर गीला कपड़ा लपेटा जाता। बच्चे, बूढ़े, जवान—सब कुल्हड़ लेकर लाइन में लगते। मैं और मेरी सहेलियाँ, राधा और श्यामा, मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर जलजीरा पीते हुए घंटों बातें करते। कभी-कभी तो हम इतना हँसते कि कुल्हड़ से पना छलक जाता।

मुझे याद है, गाँव की बूढ़ी दादी, जिन्हें सब "अम्मा" कहते थे, हमेशा जलजीरा का कुल्हड़ थामे कहानियाँ सुनाती थीं। वो कहती थीं, "बेटी, ये जलजीरा सिर्फ़ प्यास नहीं बुझाता, ये गाँव की मिट्टी का प्यार है। इसमें हमारी मेहनत, हमारा प्यार, और हमारी एकता है।" उनकी बातें सुनकर मुझे लगता था कि ये पना सिर्फ़ एक पेय नहीं, बल्कि हमारे गाँव की आत्मा है।

प्रयागराज की मिट्टी और गंगा का आलम

प्रयागराज का मेरा गाँव गंगा के किनारे बसा था। गंगा की लहरें, वो सूर्यास्त का नज़ारा, और खेतों की हरियाली—ये सब मेरे बचपन का हिस्सा थे। भंडारे के दिन गंगा के किनारे स्नान करने का भी अपना मज़ा था। हम बच्चे सुबह-सुबह गंगा में डुबकी लगाते, और फिर मंदिर की ओर दौड़ पड़ते। वहाँ जलजीरा का ठंडा घड़ा हमारा इंतज़ार करता था।

गर्मी की दोपहर में, जब सूरज अपने पूरे ज़ोर पर होता, जलजीरा हमें राहत देता। वो स्वाद, जो कच्चे आम और पुदीने की ताज़गी से बना था, गंगा की ठंडक को और बढ़ा देता। आज जब मैं शहर की भीड़ में रहती हूँ, और बोतलों में बिकने वाले पेय मेरे सामने आते हैं, मुझे वो जलजीरा याद आता है। वो स्वाद, वो प्यार, वो सादगी—काश, मैं फिर से उस गाँव में लौट पाऊँ।

जलजीरा पाउडर की लोकप्रियता और यूट्यूब

आजकल जलजीरा पाउडर की रेसिपी यूट्यूब पर काफ़ी लोकप्रिय हो रही है। लोग "homemade jaljeera powder recipe" या "how to make jaljeera at home" जैसे कीवर्ड सर्च करते हैं। यूट्यूब पर ढेरों वीडियो हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे आप घर पर जलजीरा पाउडर बना सकते हैं। ये वीडियो न सिर्फ़ रेसिपी सिखाते हैं, बल्कि गर्मियों में पाचन को बेहतर बनाने और ताज़गी पाने के फ़ायदे भी बताते हैं। अगर आप भी अपने यूट्यूब चैनल पर जलजीरा पाउडर की रेसिपी वीडियो बनाना चाहते हैं, तो इन कीवर्ड्स का इस्तेमाल करें: "jaljeera powder recipe", "homemade jaljeera drink", "aam panna powder", "Indian summer drink recipe", और "healthy jaljeera benefits". ये कीवर्ड आपकी वीडियो को ज़्यादा रीच दिलाएँगे।

वो गाँव, वो लोग, वो यादें

आज मैं शहर में हूँ, लेकिन मेरा दिल उसी गाँव में अटका है। वो भंडारा, वो जलजीरा, वो माँ की हँसी, और वो गंगा का किनारा—सब कुछ एक सपने की तरह है। माँ अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बनाई जलजीरा की रेसिपी मेरे पास है। हर बार जब मैं इसे बनाती हूँ, मुझे लगता है कि माँ मेरे पास हैं, मुझे वो गाँव की गलियाँ दिख रही हैं, और वो भंडारे की रौनक मेरे सामने है।

प्रयागराज का वो गाँव, वो भंडारा, और वो जलजीरा—ये मेरी ज़िंदगी का वो हिस्सा हैं, जो कभी नहीं भूलता। अगर आप भी उस गाँव की सादगी और स्वाद को जीना चाहते हैं, तो एक बार जलजीरा पाउडर बनाकर देखिए। ये सिर्फ़ एक पेय नहीं, बल्कि एक याद है, एक संस्कृति है, और एक प्यार है, जो गाँव की मिट्टी से जुड़ा है।



 मेरी आँखें बंद होती हैं, और मैं फिर से उसी गाँव की गलियों में खो जाती हूँ, जहाँ बचपन की हर साँस में मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी थी। गाँव का भंडारा, वो उत्सव, जो सिर्फ़ खाने-पीने का मेला नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने का एक ज़रिया था। हर साल, मंदिर के प्रांगण में सैकड़ों लोग जमा होते। हँसी-ठिठोली, बच्चों का शोर, और भजनों की मधुर धुन—सब कुछ आज भी मेरे कानों में गूँजता है।






उस भंडारे में एक चीज़ थी, जो मेरे मन को सबसे ज़्यादा लुभाती थी—आम का पना, जिसे गाँव वाले प्यार से "जलजीरा" कहते थे। वो स्वाद! कच्चे आम की खटास, पुदीने की ताज़गी, और भुने जीरे का हल्का-सा तीखापन। हर घूँट में गर्मी की तपन को जैसे कोई जादू मिटा देता था। चूल्हे पर मिट्टी के घड़े में रखा पना, जिसे माँ और चाचियाँ मिलकर बनाती थीं, उसका स्वाद आज भी मेरी जीभ पर रचा-बसा है।

याद है, मैं और मेरी सहेलियाँ, मिट्टी के कुल्हड़ों में पना लेकर मंदिर की सीढ़ियों पर बैठती थीं। हँसते-हँसते कुल्हड़ खाली हो जाते, और हम फिर से लाइन में लग जाते। बूढ़ी दादी की वो बातें, जो पने का गिलास थामे वो सुनाती थीं, आज भी मेरे दिल को छू जाती हैं। वो कहती थीं, "बेटी, ये पना सिर्फ़ प्यास नहीं बुझाता, ये गाँव की मिट्टी का प्यार है।"

आज शहर की भीड़ में, बोतलों में बिकने वाले पेय मेरे सामने आते हैं, लेकिन वो गाँव का जलजीरा? वो तो बस यादों में बस्ता है। वो भंडारा, वो लोग, वो मिट्टी की खुशबू, और वो कुल्हड़ में ठंडा पना—सब कुछ एक सपने की तरह है। काश, मैं फिर से उस गाँव में लौट पाऊँ, जहाँ हर घूँट में ज़िंदगी का सादापन और प्यार बस्ता था।

Full Recipe in Hindi https://youtu.be/8Ewyz1r8Sh4




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